
एक तालाब पर एक बगुला था, उसका भी यही हाल था। उस बगुले ने जीवनभर तालाब से जीव जानवर निकाल कर खाता रहा। लेकिन अब वो बूढ़ा हो चुका था। और शिकार नहीं कर पाता था, वह अपने भाग्य पर रोता रहता था।
एक दिन एक केकड़े ने उस बूढ़े बगुले को रोता हुआ देखा तो उसे बहुत दुख हुआ, तो उसने उस बगुले से जाकर पुछा " मामाजी क्या बात है, आप रो क्यों रहे हो?"
इस पर बगुले ने जवाब दिया "अरे भांजे मेरे दुख को किसी ने समझा ही नहीं है, बस एक तुम ही समझ रहे हो। अब ने तुम्हे कैसे बताऊं कि में इस तालाब के अंदर रहने वाले साथियों का दुख नहीं देख सकता हूं।"
केकड़े ने पूछा "कैसा दुख मामाजी?"
तब बगुले ने जवाब दिया "मेरे भांजे, तुम तो यह बात जानते ही होंगे कि में एक टांग पर खड़ा होकर भगवान की पुजा करता हूं।"
"हा जानता हू मामाजी, ओर रोज में आपको देखता हूं"
"बस भांजे कल ही मुझे भगवान ने बताया कि कुछ ही दिनों में इस तालाब का पानी ख़त्म होने वाला है, तुम तो जानते ही हो की हम हम पानी में रहने वाले जीव जंतु है, ओर पानी के बिना हम ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रह सकते है। अब तुम ही बताओ कि इस बुढ़ापे में हम अपने साथियों को मरते देखेंगे तो हमारा क्या हाल होगा?" यह कहते हुए बगुला जोर जोर से रोने लगा।
केकड़े ने जैसे ही बगुले के मुंह से ये बात सुनी तो वह दंग रह गया। और वह केकड़ा उसी समय तालाब के अंदर अपने साथियों के पास गया और बोला "दोस्तो सुनो, इस तालाब किनारे बैठे बूढ़े बगुले को भगवान ने दर्शन दिए और कहा है, की कुछ दिनों में इस तालाब का पानी ख़त्म होने वाला है, यदि हम मौके पर नहीं संभले तो हम सभी मर सकते है।"
मौत का नाम सुनते ही सभी जीव जंतु डरने लगे, ओर सब ने मिल कर बगुले के पास जाने का फैसला किया ताकि मौत से बचने को कोई उपाय ढूंढा जा सके। उन सभी भोले जीव को क्या पता था कि बगुला बड़ा चालाक है।
सभी पानी के अंदर रहने वाले जीव कछुए, केकड़े, ओर मछलियां इक्कट्ठे होकर बगुले के पास आए और बूढ़े बगुले के आगे हाथ जोड़कर कहा, "मामाजी, हमें बचने का कोई तरीका बताओ।"
फिर बगुला बोला, "देखो दोस्तों, तुम सब लोग मेरा परिवार हो, में अपने परिवार को बचाने के लिए अपनी जान तक दे दूंगा, बूढ़ा हूं तो क्या हुआ, आज भी इन बूढ़ी हड्डियों में इतनी ताकत तो है कि में तुम लोगो कि जान बचाने का काम तो कर ही सकता हूं।"
"पर मामाजी हम कैसे बचेंगे?"
बगुला बोला "एक तरीका है, में तुम सबको अपनी पीठ पर बैठा कर पास वाले तालाब में छोड़ आऊंगा। इस प्रकार तुम सबको सुरक्षित स्थान पर पहुंचा कर आख़िरी समय में पुण्य कमा लूंगा।"
फिर सारे जीव जंतु मिलकर बोले "वाह मामा वाह … मामा हो तो आपके जैसा लोकसेवक।"
और सब जीव जंतु बगुले की प्रशंसा करने लगे, उन्हे क्या पता था कि यह बूढ़ा बगुला अपने जीने का साधन ढूंढ रहा है। वह इतना भी भोला नहीं की इन जीव जंतु को वो अपने कमर पर लादकर घूमता फिरे।
दूसरे ही दिन से बगुले ने अपना काम शुरू कर दिया। सबसे पहले उस बगुले ने मछलियों को अपनी पीठ पर लादकर उन्हे वहा पास के जंगल में एक पहाड़ी पर ले जाकर खा लिया।
तीन चार दिन तक वह मछलियां खाता रहा ओर अपना पेट भरता रहा। अब मछलियां खाकर अब उसका मन भर गया।
तो अब उसने केकड़ों का नंबर लगाया, ओर सबसे पहले एक मोटे से केकड़े को लेकर चल पड़ा। उड़ता हुआ वह उस पहाड़ी पर पहुंच गया। जहां पहले से ही मछलियों की हड्डियों का ढेर लगा पड़ा था।
केकड़े ने जैसे ही मछलियों की हड्डियों के ढेर को देखा तो उसने बगुले से पूछा "मामाजी अभी वह तालाब कितनी दूर है?"
बगुले ने सोचा अब यह मंदबुद्धि सीधा सादा केकड़ा मेरा क्या बिगाड़ लेगा, अब तो ने इसे तालाब से बाहर निकाल कर लाया हूं, अब इसमें वह शक्ति कहा है।
तब बगुला अकड़कर बोला, "अरे केकड़े, तू क्या समझता है कि में तुम्हारा नोकर हूं, जो तुम सबको अपनी पीठ पर लादकर एक तालाब से दूसरे तालाब तक पहुंचाता फिरू, मैंने तो यह सब नाटक अपना पेट भरने के लिए किया था। क्योंकि इस उम्र में किसी जीव का शिकार नहीं कर सकता हूं। इसलिए मैंने तुम सब को पागल बनाया है, ओर बनाता रहूंगा। आजकल चालाकी ओर हेराफेरी से ही काम चलता है।
केकड़ा समझ गया था कि बगुला हत्यारा है, इससे जान बचाना सरल नहीं है, लेकिन उसने फिर भी साहस से काम लिया और अपनी जान कि बाज़ी लगने का फैसला कर लिया था। उसने सोचा कि यदि में मरूंगा तो इस बगुले को भी साथ लेकर मरूंगा।
इससे मेरे बाकी सभी भाई ओर दोस्त तो बच जायेंगे। यही सोचकर उसने बगुले कि गर्दन पर जोर से काट लिया तथा साथ ही उसकी सांस नली को भी पंजो से लहूलुहान कर दिया, अब दर्द के मारे बगुले के गले से एक चीख निकली और चीख़ता हुआ बोला "अरे क्या कर रहे हो छोड़ो।"
केकड़ा बोला "वही कर रहा हूं, जो तेरे जैसे पापी ओर पाखंडी के साथ करना चाहिए। यदि अपनी जान बचाना चाहते हो तो मुझे इसी समय मेरे तालाब पर वापस ले चलो, नहीं तो तुम्हें यही मार दूंगा।"
अब बगुले के पास कोई रास्ता नहीं रहा। वह उस केकड़े को वापस उसी तालाब पर ले आया। वहां पर उसने अपने साथियों को इस बगुले के बारे में बताया, ती सारे जीव जंतु मिलकर उस बगुले पर टूट पड़े। और इस बगुले को मार डाला।
इस कहानी से शिक्षा (Moral of The Story In Hindi)
इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें किसी की भी बात पर बिना सोचे समझे विश्वास नहीं करना चाहिए। अकारण के डर को अपने दिमाग से निकालकर सोच समझ कर काम लेना चाहिए। जो व्यक्ति समस्याओं से घबराकर जिस किसी पर अंधा विश्वास कर लेते है, वह अपने जीवन को उससे भी बड़ी समस्या में फसा देते है। जिस प्रकार तालाब के जीव बगुले कि बातों में आकर एक समस्या से बचने की बजाय दूसरी समस्या में फस गए।
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